सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
७२
 


बात का समय न चूकने पावे, कोई काम उलट पलट न होने पावे, अपने आस पास वालों की उन्नति से आप पीछे न रहें, किसी नौकर का अधिकार स्वतन्त्रता की हद से आगे न बढ़ने पावे, किसी पर जुल्म न होने पावे, किसी के हक में अन्तर न आने पावे, सब बातों की सम्हाल उचित समय पर होती रहे, परंतु ये सब काम इनकी बारीकियों पर दृष्टि रखने से कोई नहीं कर सकता बल्कि इस रीति से बहुत मेंहनत करने पर भी छोटे-छोटे कामों में इतना समय जाता रहता है कि उसके बदले बहुत से ज़रूरी काम अधूरे रह जाते हैं और तत्काल प्रबन्ध बिगड़ जाता है इस लिये बुद्धिमान मनुष्य को चाहिये कि काम बांट कर उनपर योग्य आदमी मुकर्रर कर दे और उनकी कारर्वाई पर आप दृष्टि रखे, पहले अन्दाज से पिछला परिणाम मिलाकर भूल सुधारता जाय एक साथ बहुत काम न छेडे़, काम करने के समय बट रहे आमद से थोड़ा खर्च हो और कुपात्र को कुछ न दिया जाय. महाराज रामचन्द्रजी भरत से पूछते हैं “आमद पूरी होत है? खर्च अल्पदरसाय॥ देत न कबहुं कुपात्रकों कहहुं भरत समुझाय”*

इसी तरह इन्तजाम के कामों में करीआयत से बडा बिगाड़ होता है. हजरत सादी कहते हैं “जिससेे तैने दोस्ती की उससे नौकरी की आशा न रख."+


  • आयस्ते विपुल: कञ्चित्कञ्चिदल्पतरो व्यय:॥

अपात्नेपुनते कञ्चित्कोषो गच्छतिराघव।।
+ चूँ इकरारे दोस्ती कर दी तबक्के खिदमत मदार।