"लाला ब्रजकिशोर साहब आज कल की उन्नति के साथी हैं। तथापि पुरानी चाल के अनुसार रोचक और भयानक बातों को अपनी कहन में इस तरह मिला देते हैं कि किसी को बिल्कुल खबर नहीं हो पाती” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.
"नहीं मैं जो कुछ कहता हूँ अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार यथार्थ कहता हूँ" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे चीन के शहंशाह होएन ने एक बार अपने मंत्री टिची से पूछा कि “राज्य के वास्ते सब से अधिक भयंकर पदार्थ क्या है?” मंत्री ने कहा "मूर्ति के भीतर का मूसा” शहंशाह ने कहा “समझा कर कह" मंत्री बोला “अपने यहां काठ की पोली मूर्ति बनाई जाती है और ऊपर से रंग दी जाती है. अब दैवयोग से कोई मूसा उसके भीतर चला गया तो मूर्ति खंडित होने के भय से उसका कुछ नहीं कर सकते. इसी तरह हरेक राज्य में बहुधा ऐसे मनुष्य होते हैं जो किसी तरह की योग्यता और गुण बिना केवल राजा की कृपा के सहारे सब कामों में दख़ल देकर सत्यानाश किया करते हैं परंतु राजा के डर से लोग उनका कुछ नहीं कर सकते” हां जो राजा आप प्रबंध करने की रीति जानते हैं वह उनलोगों के चक्कर से खूबसूरती के साथ बचे रहते हैं जैसे ईरान के बादशाह आरटाजरकसीस से एक बार उसके किसी कृपापात्र ने किसी अनुचित काम करने के लिये सवाल किया. बादशाह ने पूछा कि तुमको इससे क्या लाभ होगा?” कृपापात्र ने बता दिया तब बादशाह ने उतनी रकम उसको अपने खजाने से दिवा दी और कहा कि ‘ये रुपये ले इनके देने से मेरा कुछ नहीं घटता परंतु तैने जो अनुचित सवाल किया था उस्के पूरा करने से मैं निस्संदेह