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सज्जनता
 


को हथियार बंद होकर हाजिर होने का हुक्म दिया पर नोशेरवां इस हुक्म से हाजिर न हुआ इसलिये ख़ज़ान्ची ने क्रोध करके सब सेना को उल्टा फेर दिया और दूसरी बार भी ऐसा ही हुआ तब तीसरी बार ख़ज़ांची ने डोंडी पिटवाकर नोशेरवां को हाजिर होने का हुक्म दिया. नोशेरवां उस हुक्म के अनुसार हाजिर हुआ परंतु उसकी हथियारबंदी ठीक न थी, खजांची ने पूछा “तुम्हारे धनुष की फाल्तू प्रत्यंचा कहां है?” नोशेरवां ने कहा “महलों में भूल आया” खजांची ने कहा “अच्छा! अभी जाकर ले आओ” इसपर नोशेरवां महलों में जाकर प्रत्यंचा ले आया तब सब की तनख्वाह बँटी परंतु नोशेरवां खजान्ची के इस अपक्षपात काम से ऐसा प्रसन्न हुआ कि उसे निहाल कर दिया. इस प्रकार सच्ची सज्जनता के इतिहास में सैकड़ों दृष्टांत मिलते हैं परंतु समुद्र में गोता लगाए बिना मोती नहीं मिलता॥"

"आप बार-बार सच्ची सज्जनता कहते हैं सो क्या सज्जनता सज्जनता में भी कुछ भेदभाव है?” लाला मदनमोहन ने पूछा.

“हां सज्जनता के दो भेद हैं एक स्वभाविक होती है जिस का वर्णन मैं अब तक करता चला आया हूं. दूसरी ऊपर से दिखाने की होती है जो बहुधा बड़े आदमियों में और उनके पास रहने वालों में पाई जाती है. बड़े आदमियों के लिये वह सज्जनता सुन्दर वस्त्रों के समान समझनी चाहिए जिसको वह बाहर जाते बार पहन जाते हैं और घर में आते ही उतार देते हैं, स्वाभाविक सज्जनता स्वच्छ स्वर्ण के अनुसार है जिसको चाहे जैसे तपाओ-गलाओ परंतु उसमें कुछ अंतर नहीं आता. ऊपर से दिखानेवालों की सज्जनता गिल्टी के समान है जो रगड़ लगते ही उतर