की इज़त में बट्टा लगाना हरगिज़ मंजूर न होगा” लाला हर
किशोर ने कुछ नरम पड़ कर कहा.
"तुम्हारा रुपया कहां जाता है? तुम ज़रा धैर्य रखो, तुम ने यहां से बहुत कुछ फायदा उठाया है, फिर अबकी बार रुपये मिलने में दो-चार दिन की देर हो गई तो क्या अनर्थ हो गया? तुमको ऐसा कड़ा तकाज़ा करने में लाज नहीं आती? क्या संसार से मेल मुलाहजा बिल्कुल उठ गया?” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
"मैं भी इसी चारा विचार से हूँ" हरकिशोर ने जबाब दिया. "मैं तो माल देकर मोल चाहता हूं. ज़रूरत के सबब से तकाज़ा करता हूँ पर न जाने और लोगों को क्या हो गया जो बेसबब मेरे पीछे पड़ रहे हैं? मुझसे उनको बहुत कुछ लाभ हुआ होगा परन्तु इस समय वे सब 'तोता चश्म' हो गए उन्हीं के कारण मुझको यह तकाज़ा करना पड़ता है. जो आजकल मैं मेरे लेनदारों का रुपया न चुकाया, तो वे निस्संदेह मुझपर नालिश कर देंगे और मैं ग़रीब, अमीरों की तरह दबाव डालकर उनको किसी तरह न रोक सकूँगा?
"तुम्हारी ठगविद्या हम अच्छी तरह जानते हैं. तुम्हारी ज़िद से इस समय तुमको फूटी कौड़ी न मिलेगी, तुम्हारे मन में आवे सो करो.” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
"जनाब ज़बान सम्भाल कर बोलिये. माल देकर क़ीमत मांगना ठगविद्या है? गिरधर सच कहता है" "साईं नदी समुद्रसों मिली बडप्पन जानि॥ जात नास भयो आपनो मान महत की हानि॥ मान महत की हानि कहो अब कैसी कीजै॥ जलखारी