पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/११५

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फ़ातिहा


है। मैं पूरी तरह से उसके अधीन था, कोई भी बचने का उपाय न था ; किन्तु उस समय मैंने बड़े ही धैर्य से काम लिया और पश्तो भाषा में कहा--मुझे मारो नहीं, मैं सरकारी फ़ौज में अफ़सर हूँ, मुझे पकड़ ले चलो, सरकार तुमको रुपया देकर मुझे छुड़ायेगी।

ईश्वर की कृपा से मेरी बात उसके मन में बैठ गई। कमर से रस्सी निकालकर मेरे हाथ-पैर बाँधे और फिर कंधे पर बोझ की तरह लादकर खेमे से बाहर आया। बाहर मार-काट का बाजार गर्म था। उसने एक विचित्र प्रकार से चिल्लाकर कुछ कहा और मुझे कंधे पर लादे वह जंगल की ओर भागा। यह मैं कह सकता हूँ कि उसको मेरा बोझ कुछ भी मालूम न होता था, और बड़ी तेज़ी से भागा जा रहा था। उसके पीछे-पीछे कई आदमी, जो उसी के गिरोह के थे, लूट का माल लिये हुए भागे चले आ रहे थे।

प्रातःकाल हम लोग एक तालाब के पास पहुँचे। तालाब बड़े-बड़े पहाड़ों से घिरा हुआ था। उसका पानी बड़ा निर्मल था, और जंगली पेड़ इधर-उधर उग रहे थे। तालाब के पास पहुँचकर हम सब लोग ठहरे। बुड्ढे ने, जो वास्तव में उस गिरोह का सरदार था, मुझे पत्थर पर डाल दिया। मेरी कमर में बड़ी जोर से चोट लगी, ऐसा मालूम हुआ

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