पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/११६

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फ़ातिहा


कि कोई हड्डी टूट गई है; लेकिन ईश्वर की कृपा से हड्डी टूटी न थी। सरदार ने मुझे पृथ्वी पर डालने के बाद कहा--क्यों, कितना रुपया दिलायेगा ?

मैंने अपनी वेदना दबाते हुए कहा--पाँच सौ रुपये।

सरदार ने मुँह बिगाड़कर कहा--नहीं, इतना कम नहीं लेगा। दो हज़ार से एक पैसा भी कम मिला, तो तुम्हारी जान की खैर नहीं।

मैंने कुछ सोचते हुए कहा--सरकार इतना रुपया काले आदमी के लिये नहीं खर्च करेगी।

सरदार ने छुरा बाहर निकालते हुए कहा--तब फिर क्यों कहा था कि सरकार इनाम देगी! ले, तो फिर यहीं मर।

सरदार छुरा लिये मेरी तरफ़ बढ़ा।

मैं घबड़ाकर बोला--अच्छा, सरदार, मैं तुमको दो हज़ार दिलवा दूँगा।

सरदार रुक गया और बड़ी जोर से हँसा। उसकी हँसी की प्रतिध्वनि ने निर्जीव पहाड़ों को भी कँपा दिया। मैंने मन-ही-मन कहा--बड़ा भयानक आदमी है।

गिरोह के दूसरे आदमी अपनी-अपनी लूट का माल सरदार के सामने रखने लगे। उसमें कई बंदूकें, कारतूस,

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