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फ़ातिहा
देखो, जब लैला ढूँढ़ती हुई यहाँ आवे, तो मेरा शरीर बालू से ढक देना, नहीं तो शीशे की तरह लैला का दिल टूट जायगा।
मैंने गाना बन्द कर दिया। उसी समय छेद से किसी ने कहा--क़ैदी, फिर तो गाओ।
मैं चौंक पड़ा। कुछ खुशी भी हुई, कुछ आश्चर्य भी ; पूछा--तुम कौन हो ?
उसी छेद से उत्तर मिला--मैं हूँ तूरया, सरदार की लड़की।
मैंने पूछा--क्या तुमको यह गाना पसन्द है ?
तूरया ने उत्तर दिया--हाँ, क़ैदी गाओ, मैं फिर सुनना चाहती हूँ।
मैं हर्ष से गाने लगा। गीत समाप्त होने पर तूरया ने कहा--तुम रोज़ यही गीत मुझे सुनाया करो। इसके बदले में मैं तुमको और रोटियाँ और पानी दूँगी।
तूरया चली गई। इसके बाद मैं सदा रात के समय वही गीत गाता, और तूरया सदा दीवार के पास आकर सुनती।
मेरे मनोरञ्जन का एक मार्ग और निकल आया।
धीरे-धीरे एक मास बीत गया; पर किसी ने अभी तक
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