पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१३८

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फ़ातिहा

तूरया ने शान्त स्वर में कहा--तू मेरा खोया हुआ बड़ा भाई नाज़िर है। यह जो तेरे हाथ में निशान है, वही बतला रहा है कि तू मेरा खोया हुआ भाई है।

बचपन से ही मेरे हाथ में एक साँप गुदा हुआ था। और यही मेरी पहिचान फ़ौजी रजिस्टर में भी लिखी हुई थी।

मैंने हँसकर कहा--तूरया तू मुझे भुलावा नहीं दे सकती। मैं अब तुझे किसी तरह न छोड़ूँगा।

तूरया ने अपने हाथ से छुरा फेंककर कहा--सचमुच तू मेरा भाई है। अगर तुझे विश्वास नहीं होता, तो देख,मेरे दाहिने हाथ में भी ऐसा ही साँप गुदा हुआ है।

मैंने तूरया के हाथ पर दृष्टि डाली, तो वहाँ भी बिल्कुल मेरा ही जैसा साँप गुदा हुआ था।

मैंने कुछ सोचते हुए कहा--तूरया, मैं तेरा विश्वास नहीं कर सकता, यह इत्तफाक़ की बात है।

तूरया ने कहा--मेरा हाथ छोड़ दे। मैं तुझपर वार न करूँगी। अफ्रीदी झूठ नहीं बोलते।

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया, वह पृथ्वी पर बैठ गई,और मेरी ओर देखने लगी। थोड़ी देर बाद उसने कहा--अच्छा तुझे अपने माँ-बाप का पता है ?

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