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जिहाद


ज़िन्दा न होगी। यहाँ से चलने की तैयारी करो। मैं साथ के और लोगों को भी जाकर समझाता हूँ। ये ख़ान लोग हमारी रक्षा करने का ज़िम्मा ले रहे हैं। हमारी जायदाद, ज़मीन, दौलत सब हमको मिल जायगी। ख़ज़ाँचन्द की दौलत के भी हमीं मालिक होंगे। अब देर न करो। रोने-धोने से अब कुछ हासिल नहीं।

श्यामा ने धर्मदास को आग्नेय नेत्रों से देखकर कहा--और इस वापसी की क़ीमत क्या देनी होगी ? वही जो तुमने दी है ?

धर्मदास यह व्यंग न समझ सका। बोला--मैंने तो कोई क़ीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या।

श्यामा--ऐसा न कहो। तुम्हारे पास वह ख़ज़ाना था, जो तुम्हें आज कई लाख वर्ष हुए ऋषियों ने प्रदान किया था, जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शङ्कर, शिवाजी और गोविन्दसिंह ने की थी। उस अमूल्य भाण्डार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया। इन पाँवों घर लौटना तुम्हें मुबारक हो। तुम शौक़ से जाओ। जिन,तलवारों ने वीर ख़ज़ाँचन्द के जीवन का अन्त किया, उन्होंने मेरे प्रेम का भी फ़ैसला कर दिया। जीवन में

इस वीरात्मा का मैंने जो निरादर और अपमान किया, इसके

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