पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/८६

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मन्त्र


सुनता था। प्रेमिका के सम्मुख अपनी सर्प-कला-प्रदर्शन का ऐसा अवसर पाकर वह कब चूकता। एक मित्र ने टीका की--दाँत तोड़ डाले होगे ?

कैलास हँसकर बोला--दाँत तोड़ डालना मदारियों का काम है। किसी के दाँत नहीं तोड़े गये। कहिए तो दिखा दूंँ ? यह कहकर उसने एक काले साँप को पकड़ लिया और बोला--मेरे पास इससे बड़ा और जहरीला साँप दूसरा नहीं है। अगर किसी को काटले, तो आदमी आनन-फ़ानन मर जाय। लहर भी न आये। इसके काटे का मंत्र नहीं। इसके दाँत दिखा दूँ ?

मृणालिनी ने उसका हाथ पकड़कर कहा--नहीं, नहीं, कैलास, ईश्वर के लिये इसे छोड़ दो ! तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ !

इस पर एक दूसरे मित्र बोले--मुझे तो विश्वास नहीं आता, लेकिन तुम कहते हो तो मान लूंँगा।

कैलास ने साँप की गरदन पकड़कर कहा--नहीं साहब, आप आँखों से देखकर मानिये। दाँत तोड़कर बस में किया, तो क्या किया। साँप बड़ा समझदार होता है। अगर उसे विश्वास हो जाय कि इस आदमी से मुझे कोई हानि न पहुँचेगी, तो वह उसे हर्गिज़ न काटेगा।

मृणालिनी ने जब देखा कि कैलास पर इस वक्त भूत

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