पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/८७

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मन्त्र


सवार है ; तो उसने यह तमाशा बंद करने के विचार से कहा--अच्छा भई, अब यहाँ से चलो, देखो गाना शुरू हो गया। आज मैं भी कोई चीज सुनाऊँगी। यह कहते हुए उसने कैलास का कंधा पकड़कर चलने का इशारा किया और कमरे से निकल गई ; मगर कैलास विरोधियों का शङ्का-समाधान करके ही दम लेना चाहता था। उसने साँप की गरदन पकड़कर जोर से दबाई, इतनी जोर से दबाई कि उसका मुँह लाल हो गया, देह की सारी नसें तन गई। साँप ने अब तक उसके हाथों ऐसा व्यवहार न देखा था। उसकी समझ में न आता था कि यह मुझसे क्या चाहते हैं। उसे शायद भ्रम हुआ कि यह मुझे मार डालना चाहते हैं। अतएव वह आत्मरक्षा के लिये तैयार हो गया।

कैलास ने उसकी गरदन खूब दबाकर उसका मुँह खोल दिया और उसके जहरीले दाँत दिखाते हुए बोला--जिन सज्जनों को शक हो, आकर देख लें। आया विश्वास, या अब भी कुछ शक है ? मित्रों ने आकर उसके दाँत देखे और चकित हो गये। प्रत्यक्ष प्रमाण के सामने सन्देह को स्थान कहाँ। मित्रों की शंका-निवारण करके कैलास ने साँप की गरदन ढीली कर दी और उसे जमीन पर रखना चाहा। पर वह काला गेहुवन क्रोध से पागल हो रहा था। गरदन

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