पृष्ठ:पाइअ सद्द महण्णवो - समर्पण.pdf/६

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संकेत | ग्रन्थ का नाम । ; संस्करण पादि | जिसके अंके दिये

गए हैं वह | गुभा छू गुरुवन्दनभाष्य भीमसिंह माणेक, बम्तई, संवत्‌ १६६२ »«. गाधा ग़ुद् « शभुझ्प्रदक्तिणाकुलक अंब्रालाल गोबर्धनदास, बम्बई, १६१३ यह. ॥ गोय 5 गौतमकुक्तक भमर्सिह माणेक, बम्बई, संवत १६६५ । सा जउठ -> चडसरशणापयन्नों १ जैन-धर्म-प्रसारक-समा, भावनगर, संबत्‌ १६६६ न्‍् हे २ शा. बाह्लाभाई ककल्लमाई, अमदावाद, संवत्‌ १६६२ क् चैड * प्राकृतल्लक्षणा # एसियाटिक सोसाइटी, बंगाह्न, कल्नकता, १८८० चंद “ चंदपन्‍्नत्ति हस्तलिखित ३ .«.. पाहुड चार. + चारुदत्त ब्रिवेन्द्र-संस्कृत-सिरिज »... फूठ चेहय + चेइ्यवंदगामहाभास जैन झात्मानन्द सभा, भावनगर, संबत्‌ १ €६२ .... गाथा चैत्य.. + चैत्यवन्दन साध्य भीमसिंह माणेक, बम्बई, संवत्‌ १६६२ ,... +» जं * जंबदीपप्रशसि १ देवचेद प्लान्भाई पु० फंड, बम्बई, १६२० .... वज्षस्कार २ हसुतल्लिखित | जय #* जयतिहुअण-स्तोन्न . जैन प्रभाकर प्रिंटिंग प्रेस, रतलाम, प्रथमात्रत्ति ४५० गाथा जी ++ जीवविचार आत्मानन्द-जैन-पुर्तक-प्रचारक-मंडल, आगरा, संवत्‌ १६७८ ,, जीत. जीतकल्प हस्तलिखित बे शा ड जीव. + जीवाजीवाभिगमसूत्र देवचंद लाज्भाई पुस्तकोद्धार फंड, बम्बई, १६१६ ... प्र॑तिपत्ति जीवस - जीवसमासप्रकरणा + हस्तक्षिखित गाथा जीवा 5 जीवानुशासनकुक्षक . अंबाक्षाक्ष गोवर्धनदास, बम्बरई, १६१३ ५ जो # ज्योतिष्करयडक हस्तलिखित ् .«... पाहुड दि «७. + टिप्पया ( पाठान्तर ) ह टी न्‍ः | टीका ना मा ठा - ठाणांगसुत्त आगमोदय-समिति, बम्बई, १६१८-१६२० .«. डठॉयौ० शांदि 55 यांदिसूल् १ हस्तल्लिखित ९ आगमोंदय समिति, बम्बई, १६२४ पत्र सामि 5८ य)मिऊण-ल्मरण स्व-संपांदित, कल्लकत्ता, संदत्‌ १६७८ »«... गाथा शखशाया - शखायाधम्मकहासुत्त आगमोदय समिति, बम्बई, १६१६ ..« श्रुतस्कन्ध, अध्य० तंदु - तंदुल्लवेयात्रियपयननो १ हस्तल्नलिखित ०० .२ देब्क्षा० पुस्तकोद्धार फंड, बम्बईं, १६२२ ... पत् ति ल्‍ तनिजयपहुत जेन-शञान-प्रसारक-मंडल, बम्त्रई, १६११ .... गाथा तित्थ. - तित्थुग्गान्नियपबम्नो हस्तल्लिखित


+ श्रद्धेय श्रीयुत के. प्रे. मोदी द्वारा प्राप्त

+ पाठान्तर बाले संस्करणों के जो पाठान्तर हमें उपादेय मालूम पड़े है' उन्हे' भी इस कोष में स्थान दिया दे और प्रमाण के पांस (ठि' शब्द जोड़ दिया है जिससे उस शब्द को उसी स्थान के टिप्पन का समझना चाहिए।

  1. जहां पर प्रमाण में ग्रन्थ-संकेत और स्थान-निदे शा के अनन्तर “टी” शब्द ल्लिखा है वहां उस ग्रन्थ के उसी स्थान

की टीका के प्राकृतांश से मतलब है।