पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/१०

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पा र्ट न रे चार दिन हो गए, दुकान बंद थी। आज खोली। काम में डुबो लिया। परेशानी असल में होती है, घर जाकर। घरवालों से संबंध सिर्फ दो और खाने तक, बाकी बेडरूम का दरवाजा बंद कर लेता हूँ। अंदर एक तो सो जाना, नहीं तो आवाज बंद कर के टीवी देखना और जब कभी मन बेकाबू हो जाए तब रो देना। दोस्तों से कॉन्टॅक्ट छूट गया है। छुट्टी से तो डर ही लगता है। समझ में नहीं आता, पूरा दिन क्या करूं? वक्त कैसे कटेगा? मालूम है अब खुद को सँवरना बहुत जरूरी है लेकिन क्या करूँ, कुछ करने को मनही नहीं करता। कितने दिन हो गए, डायरी की तरफ देखा भी नहीं। फिर से लिखना शुरू करना चाहिए। लगता है, आखिर तक यही एक चीज है, जो साथ निभाएगी। आज बड़ी हिम्मत के साथ तय किया, घर ठीक-ठाक कर दूं परछत्ती समेटन के लिए उपर चढ़ा कितने महिने या साल बीत गए, यहाँ देखा भी नहीं है। टूटी हुई इस्त्री, टेपरेकॉर्ड। इलेक्ट्रॉनिक की-बोर्डी स्सी के टुकड़े, थैलियाँ, बॅग्जा मकडी के जाल ही जाला पुराने कपडे, इरू की एक जॉकी स्टाईल की अंडरवेअर, अभी भी इरु की बू उसमें बाकी है। पुराने ताले और उनपर न चलनेवाली चाबियाँ पुराने अल्बम, मॅगझिन्स, कॉलेज की किताबें, नोटबुक्स, फाईल्स। बहुत दिनों से रखी हुई डायरियाँ-कम-जर्नल्सा फटे हुए, छूटे हुए पन्ने, कुछ घूमिल, कुछ सिकुडे हुए, कुछ सड़े हुए। और कुछ इतने नए जैसे की पहली बार छू रहा हूँ। मेरे अगल बगल में फैला हुआ सामान और बीचोबीच मैं