पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/२५

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उस समय कुछ सुझ नहीं रहा था। बाकी आम लोगों जैसा मैं नहीं हूँ और जतीन गाली जैसा इस शब्द का प्रयोग कर रहा है, इसका मतलब जरुर ही मैं एकदम घटिया हाँ विकृत हूँ मैं। सोचा, यह कौन से जनम का पाप आज मेटे सर पर नाच रहा है? मैं ही सेसा क्यों ? सबसे निराला? सोचते सोचते दिमाग खटाव हो गया। लगा, क्या मैं इस दुनिया में अकेलाही सेसा हूँ? अगर और कोई है, तो कहाँहै वे लोग? किससे बात की कौन होगा जो मुझे इस बारे में सही जानकारी दे सकेगा? कौन होगा जो मुझसे नफरत नहीं करेगा? कल अत्रे सभागृह में एक किताब प्रदर्शनी में गया था। सेक्स एज्युकेशन की एक किताब वहाँ देखी। एक भारतीय डॉक्टर ने लिखी थी। सबकी नजर बचाकर मैंने चुपके से किताब के आखरी पन्ने पर दिया क्रॉस-इंडेक्स देखा। उस में 'होमो' शब्द ढूँढ़ा। वो पूरा पन्ना पढ़ा। समलैंगिकता को उसमें विकृती बताया था। सलाह दी थी की लड़कों का विचार मन में आते ही, तुरंत उसे रोक देना चाहिए। इस प्रवृत्ति को अगर बदलना है, तो हर रोज आईने के सामने खड़े होकर दोहराते रहने की सलाह दी गई थी की, 'मैं ऐसे घटियाँ खयाल मन में आने नहीं दूंगा।' सीने में एक कसक उठी। सेसी गलत सलाह ने मुझे गजब की तकलीफ दी। फायदा रत्तिभर भी नहीं हुआ। मैं विकृत हूँ। माँ और पिताजी ने कितने प्यार से मेरी परवरिश की। मेरे कारण उन्हें कितना कुछ सहना पड़ा है, और मैं किस तरह उनका किया हुआ वापस चुका रहा हूँ। आज मैं ने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा, हे भगवान, कुछ भी कर, मैं लेकिन मुझे ठीक कर दे। अब सहा नहीं जाता। अब भी मैं जतीन और मिलिंद को मनमें लाकर हाथ से करता हूँ। बाद में मुझे मुझसे ही नफरत होती है। जतीन को पता चला तो? उसकी नजर में मैं गिर जाऊँगा। माँ को पता चला तो? कितना दुःख होगा उसे। मैं जिंदा रहनेलायक नहीं हूँ। कोई भी मुझसे प्रेम नहीं करेगा। मैं मर जाना चाहता हूँ। नींद की गोलियाँ खाकर मर जाऊँ तो सभी को छुटकारा मिलेगा।