पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/२६

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उस समय पहली बार खुदकुशी का विचार मेरे मन में आया। तब तक पुरुष से प्रेम करने में मुझे कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन जतीन ने जो सवाल मेरे मुंह पर मारा, उससे मुझे साफ दिखाई दिया की मेरी यह भावना समाजमान्य नहीं है। गर्हणीय, तिरस्कृत है। एक क्षण में मेरा आत्मसम्मान जलकर खाक हो गया। जतीन अब भी मुझे 'क्यो रे, कैसा है तेरा होमों दोस्त?' यह व्यंग्यभरा प्रश्न पूछता है क्योंकि तुरंत उसे मेरी आँखो में भय की भावना दिखाई देती है। दूसरों को असुरक्षित करके खुदके सुरक्षित होने का आध्यास निर्माण करने का गुण कुछ लोगों में बड़े पैमाने में होता है। आज तक नियमित रूप से यह बात मैं अलग अलग पहलू में देखता आया हूँ। लगता था की बढ़ती उम्र के साथ यह असुरक्षितता का सहसास कम होता होगा। लेकिन ऐसा नहीं होता। कुछ लोगों की पूरी जिंदगी ही दूसरों की असुरक्षितता के भरोसे होती है। Like a parasite, they feed on someone's insecurity. आजकल दोस्तों के ग्रुप में मन बहलता नहीं। मैं अलग प्रकार का हूँ, सबसे जुदा किस्म का हूँ इस विचार का किडा मन में भुनभुनाता रहता है। पढ़ाई से मन उड़ गया है। अंग्रेजी, फिजिक्स और मराठी में ठीक मार्क्स है। लेकिन बाकी के विषयों में मैं जैसे तैसे सिर्फ पास हो गया हूँ। घरवाले परेशान है, आखिर मुझे हो क्या गया है। पिताजी ने अच्छी डाँट भरी, माँ भी नाराज है। उन्होंने इस सबकी वजह पूछी- कही बुरी संगती में तो तुम नहीं फँसे हो?, शराब पी रहे हो क्या?, जुओ की लत तो नहीं? या प्रायव्हेट क्लास में अच्छा पढ़ाते नहीं? मैं होंठ सिलाकर चूपा क्या बताऊँ? और कैसे? अब कुछ करने को जी करता ही नहीं। कुछ आकांक्षा रही नहीं। अंदर से मर गया हूँ मैं। शिक्षा लेकर भी क्या करूँगा? क्या मतलब रहा है इस तरह से जिने का? हर रोज सुबह आईने के सामने खड़े रहकर कहता हूँ, “मैं बुरे खयाल मन में नहीं आने दूंगा।' लड़कियों के बारे में सोचने की कोशिश करता हूँ। लड़कों को १७... ...