पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/२९

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भावनाएँ जगती है। क्या करू, समझ में नहीं आ रहा है। दिन के उजाले से भी मन ऊब गया है। आजकल मैं बेडरूम का दरवाजा बंद करे, पर्दे ओढ़ के कमरे में अँधेरा करता हूँ और लेटा रहता हूँ। उधर माँ-पिताजी सोचते हैं की मैं अंदर पढ़ाई में मशगुल हूँ। सेमिस्टर सर पर है और मैं हाथों पे हाथ धरे बैठा हूँ। जाने दो। जो होना है सो हो जाएगा। > ये और आगे के दो-तीन साल मेरे लिए सबसे घटिया वक्त था। उन बुरे दिनों के बार में आज सोचने पर थी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आज एक भयंकर घटना घटी। हम कुछ दोस्त लॉ कॉलेज के पीछले टीले पर घुमने गए थे। जतीन का ग्रुप हमारे आगे ही चल रहा था। ‘अरी ओ' एक बड़े से पत्थर पर बैठकर कुछ लिख रहा था। जतीन ने उसे छेड़ा। बेवजह। उसकी कापी छीन ली। पढ़ने लगा। वह कोई कविता थी। जतीन उसे चिढ़ाने लगा। 'क्यो बें, कविता करता है क्या? बोल, लड़का हो या लड़की?' जतीन के ग्रुप के बाकी दोस्त हँसने लगे। हमारा ग्रुप रूक गया। वो लड़का उसकी कापी वापस माँग रहा था। जतीन बोला, 'दे दूंगा, लेकिन पहले यह बता की तू लड़का है या लड़की?' वह लड़का झेंप गया। उसपर श्रीपाल बोला, “क्यो अरी ओ, बता नहीं सकता?' सबके ठहाके बढ़ गए। इधर मेरे तो पसीने छूटने लगे। हाथ पाँव काँपने लगे। जतीन बोला, 'ठीक है, तू बोलता नहीं तो हम ही छान बीन कर लेते है-पकड़ो साले को।' नेहा, श्रीपाल, सत्यजीत ने उसे पकड़ा। वह डर गया, रोने लगा। ‘छोड़ दो मुझे' कहकर पाँव पकडने लगा। जतीन ने उसे पँट की चेन निकालकर पँट नीचे खींच ली। जतीन को पकड़ से छुटकारा पाने के लिए बेचारा बहुत उठापटक कर रहा था। जतीन ने उसे एक जोरदार तमाचा मारा और उसका जाँघिया नीचे कर दिया। फिर जतीन उसे दुलारने लगा। 'ओ मेले बच्चे क्या हुआ? लोना नहीं हा। छोटा काजू है ना?.... फिर लड़की जैसे क्यों रहते हो? और अगर लड़की बनके रहने का इतना शौक है तो अच्छी लड़की बनकर मेरे नीचे से जाने का, समझे!... होमो साला।' मैं बीच में पड़ना चाहता था लेकिन उस लड़के की हिमायत कर सकूँ, इतनी हिम्मत मुझमें कहाँ? डर था, अगर मेरा भी जाँघिया निकाला गया तो? मैं, जॉन और रवी तुरंत वहाँ से दफा हो गए। बेवजह हमारा नाम इस छीना-झपटी से जुड़ न जाए। मुझे, मुझपर, जतीन, नेहा, श्रीपाल, सत्यजीत, जॉन, रवी-सभीपर शर्म आ रही है। 1 , २०...