पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/४८

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1 डॉक्टर के पास जाना छोड़ दिया है। मैंने पहले ही कहा था, ठीक उसी तरह उस मादरचोत की ट्रिटमेंट कुछ न कर सकी। सारा पैसा, वक्त बरबाद हुआ और उपर से मनस्ताप। माँ को दो टुक बता दिया कि अब डॉक्टर के पास नही जाऊँगा। उसने फिर से रोनाधोना शुरु कर दिया। कहा, 'सर पटककर जान दे दूंगी।' 'शौक से दे दो।' मैंने भी उलटा जवाब दे दिया। जी उकता गया है इस रोज के तमाशे से। फिल्म देखने निकल पड़ा। अब धीरे धीरे घरवालों से मेरा मन उड़ जाने लगा है। कुछ समझ ही नहीं पाते। गराज के लड़कों के साथ अब मैं शराब पीने लगा हूँ! शुरु में थोड़ी झुझलाहट होती थी लेकिन अब आदत हो गई है। सिर्फ इतना खयाल रखता हूँ कि कहीं हदसे बाहर न पिऊँ। डर लगता है कि अगर नशे में धुत हो गया तो शायद मैं राजू के पास जाऊँगा, उसका चुंबन ले लूँगा और तब बड़ी गडबडी मचेगी। दोस्तों के साथ पीना शुरु कर देने से मेरा भाव बढ़ गया है। अकेलापन खाया जा रहा है। किसी के साथ बात नहीं कर सकता। किसी के साथ मेरे प्रॉब्लेम शेअर नहीं कर सकता। घरवालों से कोई परेशानी नहीं-क्योंकि उनके साथ बोलचाल ही बंद है। परंतु मेरा क्या होगा? मेरी भावनिक, शारिरीक जरुरतों का क्या होगा? क्या मुझे इस तरह अकेले ही जिंदगी बितानी पड़ेगी? मन में इच्छा उभरती है, किसी के बाहो में समा जाऊँ। मन और शरीर से उसका हो जाऊँ खुद को उसकी बाहोंमें समर्पित कर दूं यह बात मेरे नसीब में है या नहीं? कल मैंने अकेले ने शराब पी। घरमें बताया था, गराज में बहुत काम है देरी से लौटूंगा। दूर के एक बार में गया। नशा सरपर चढ़ी तो पहचान की एक जगह गया। नशे के कारण संकोच दूर हो गया था। किसी के हाथ में पचास रुपसे रखे। अंधेरे में उसका चेहरा दिखाई नहीं दिया, या फिर, अब मुझे याद नहीं कह नहीं सकता। सारी रात कहाँ, कैसे बिताई, कुछ भी याद नहीं। स्क बाट डासना अनुभव आने के बाद श्री मैं क्यों फिर उसी जगह गया, पता नहीं। भूख से छेकाबू आदमी कुछ भी करने को तैयार होता है। यह बात रोज खाना खानेवाले की समझ में नहीं आयेगी। उस समय मेरे पास निरोध नहीं था। अगर होता तो भी क्या ३९...