पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/४९

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नशे की स्थिति में उसकी याद रहती? याद भी रहती, तो क्या उसे लिंगपर चढाने की सुध होती? पूरा होश खो बैठा था मैं। ..... कहा, आज फिरसे उस जगह गया। बाहर एक लड़का खड़ा था। मेरे पास आया। 'कितने बजे?' उसने पुछा। '९.३०.... तुम्हारे पास तो घड़ी है.....' मैं। वह सिर्फ हँस दिया। 'आएगा क्या?'.... मैं। 'चल, चाय पिएंगे'- लड़का। सामने की टपरी से हमने दो कटिंग चाय मँगवाए। उसका नाम नरेन। उसने 'मैं एक एन.जी.ओ. के लिए काम करता हूँ। यह संस्था समलिंगी लोगों के लिए काम करती है। उस संस्थाका एक 'गे सपोर्ट ग्रुप' है। (गे का मतलब समलिंगी। आज पहली बार मैंने यह शब्द सुना। उसका अर्थ मालूम हुआ।) एच.आय.व्ही और गुप्तरोग की जाँच हम 'नारी'- NARI (National AIDS Research Institute, Bhosari, Pune) से करते है। उसने उसके संस्था का हेल्पलाईन फोन नंबर दिया। नरेन भी 'गे' है। मैंने मेरा नाम 'राहूल' बताया। उसने कहाँ, 'अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें ट्रस्ट ले जाऊँगा।' मैं बैचेन हुआ। मुझे किसी संस्था या ग्रुप में जाना नहीं है। मेरे अनेक दोस्तों ने इस चेचैनी का अनुभव किया है। गे सपोर्ट ग्रुप' के पास सहाटे के लिए जाना आसान नहीं। मेरे ख्याल से, 'आऊट होना' (अपनी समलैंगिकता का स्वीकार करना और औरों को गर्व से कह देना) जितना मुश्किल है, सपोर्ट ग्रुप के पास जाना उतना ही कठिन है। मन में डर रहता है, किसीने देख लिया तो? अब यह थी बात है, कि समझ लीजिए, सेसी जगह अगर कोई पहचानवाला मिल गया, तो तुरंत उसे पूछा जा सकता है कि तू यहाँ क्या कर रहा है? लेकिन समलिंगी व्यक्ति इतना निडट नहीं होता। सेसी संस्था में जाते किसी ने देखा तो? वहाँ जाकर कुछ अटपटा ४० ...