पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/६

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इस पृष्ठभूमि पर मैंने विचार किया की मैं समलिंगी हूँ और पिछले कुछ सालों से इस विषय में काम कर रहा हूँ। तो फिर मैं ही क्यूँ न कुछ लिखू? इस पुस्तक के बारे में विचार करते समय, ध्यान में आया की समलैंगिता के जो अनेक पहलू है, वे सभी के सभी मैंने अनुभव नहीं किए हैं। ऐसे में सिर्फ मेरे अनुभव बताते रहने से बेहतर है, मेरे दोस्तों के अनुभव, इस विषय पर लिखा गया साहित्य, पाश्चात्य देशों का रवैय्या आदि का भी इसमें समावेश हो जाए। पुस्तक में वर्णीत रोहित का किरदार काल्पनिक है, फिर भी उसके अनुभव वास्तव है। अब इस पर आरोप लग सकता है की ऐसी किताब 'ऑब्जेक्टीव्ह' नहीं हो सकती। वह 'बायसड्' ही होगी। परंतु कोई यह बताए की वैसे परंपराग्रस्त लोगों के विचार कहाँ तक 'ऑब्जेक्टिव्ह' होते ? मैं तो कहूँगा, मैं खुद यह जिंदगी जीता आया हूँ और आपने यह जानकारी जिस व्यक्ति को अपनी लैंगिकता पर शर्म-घिन है, या अज्ञान है, उससे सुनी है। मैं अपनी ओरसे मेरे विचार पेश करना चाहता हूँ। आशा है, आप उनकी तरफ निष्पक्ष नजर से देखेंगे। यह पुस्तक किसके लिए? यह पुस्तक हरेक के लिए है। माँ, पिता, बेटा, बेटी, भाई, बहन, दोस्त, सहेली, बहू, दामाद, रिश्तेदार, पड़ोसी, सहयोगी आदि। इनमें से कोई भी समलैंगिक हो सकता है। इतना ही नहीं, हम सबने कभी ना कभी कम से कम एक समलिंगी व्यक्ति को देखा ही होता है। उसके समलैंगिक होने की जानकारी हमें नहीं होती। प्रायः ऐसा भी देखा जाता है की कुछ समलिंगी लोग खुद सबसे ज्यादा समलिंगीयों से नफरत करनेवाले होते है। मुझमें कुछ न्यून है, मैं बहुत बुरा हूँ, गया -बीता हूँ यह भावना उन्हें मन ही मन खाती रहती हैं और फिर यह घृणा यह लोग उन जैसे लोगों पर व्यक्त करते हैं। - पांचे