पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/७८

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2 लिए अमरिका हो आया था, इसलिए उसे यात्रा की चिंता न थी। मैंने महाराष्ट्र की सीमा तक नहीं पार की थी। मुझे बहुत टेक्शन हो गया था। 'पहुँचते ही फोन करना, अपना खयाल रखना' मैं बार-बार उसे कह रहा था। उसने जबाब दिया, 'तुम और मेरी अम्मी! कोई फर्क नहीं दोनों में। दोनों ऐसे ही भुनभुनाते रहते हो।' माँ को बहुत याद कर रहा था। मैंने उसे सुझाव दिया कि दादर से घर फोन कर दो। उसने इन्कार कर दिया। कहा पार चला जाऊँगा तभी घरवालों को बताऊँगा। सहार एअरपोर्ट पहुँच गए। मैं जिंदगी में पहली बार एअरपोर्ट देख रहा था। बहुत गंदा था। पुणे. रेल्वे स्टेशन और सहार एअरपोर्ट में कुछ फर्क नहीं। वहाँ रात दस बजेतक, बॅग्ज के साथ, हाथों में हाथ लिए बाहर बैठे रहे। बोलना व्यर्थ लग रहा था। फिर इरु का जाने का वक्त हो गया। उसने मुझे गले लगा लिया। किस किया। दोनों अनायासही रो पड़े। एक दूसरे को छोड़ने का मन नहीं कर रहा था। थोडी देर के बाद कुछ शांत हो गए। सिंगापूर एअरलाईन्स गेट के नजदीक पहुँचे। उसने मेरे हाथ उसके हाथों में पकड़े। कसकर। फिर से मेरा गला रुंध गया। दोनों फिर एक बार रो पड़े। उसने कहा, 'आय लव्ह यू'। और झट से मुड़कर अंदर चला गया। फ्लाईट रात दो बजे की थी। उसकी फ्लाईट छूटने तक मैं बाहर बैठा रहा। मन में कोई भी विचार नहीं। खाली मन से सुन्न-सा बैठा रहा। आज इरु का फोन आया। वह अमरिका पहुँच गया। कंपनी ने उसे वन बेडरुम का अपार्टमेंट दिया है। एक कलीग के साथ शेअर कर रहा है। कल निश्चय के साथ तय किया की घर समेटना है। परछत्ती ठिकठाक करने लगा। कितने महिने गुजर गए, उसकी तरफ देखा भी नहीं था। मेरी जिंदगी के, इरु के साथ बिताए हुए यह तीन साल सबसे सुंदर रहे। इन तीन सालों ने मुझे इन्सान बनाया। इस समय की यादें जिंदगी भर मेरे साथ रहेगी। क्या, इरु वापस लौटेगा? पता नहीं। कोई दूसरा इरु मेरी जिंदगी मे आएगा? पता नहीं। ऐसे दिन फिर से आएँगे? पता नहीं.... लेकिन मुझे आशा है। आज बहुत दिन के बाद ट्रस्ट पर गया। कितना सारा काम पड़ा है। y ६९...