सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विधवाश्रम औरतों को श्रार सुधारते हैं, उनकी रक्षा करते और उन्हें सन्मार्ग पर लाते हैं। महाराज! आप कृपा कर इस लड़की का कुछ उपाय कीजिए" इतना कह कर उसने अपने पीछे सिकुडो खड़ी बालिका को धकेल कर आगे किया और माथा टेकने का आदेश दिया। बालिका आगे दो कदम बढ़ कर ठिठक गई। बोला नहीं, न उमने माथा ही टेका। केवल एक बार भयभान नेत्रों से मण्डली को देवा । एक क्षण हाम्य-रेवा उसके मुख पर आई और वह चुपचाप खड़ी धरती को निहारने लगी। तीनों आदमी उस शर्माई हुई बालिका को एकटक देखने लगे। मण्डली विचलिन सी हो गई ! गजपति ने कहा-"बुड्ढी माँ. तुमने अच्छा किया इने यहाँ ल आई, यहाँ इतका हमजालियाँ बहुत हैं । अच्छा, इसे जरा आने-जाने को कही। क्यों जी, तुम्हारा नाम क्या है ? इतना कह कर गजपति ने उसके कन्धे पर हाथ धर दिया ? डॉक्टर जी ने कहा-"ठहरा, उसे सामने वाली कोठरी में बैठने दो, मैं इससे अभी बात करूँगा" बालिका तत्काल कोठरी की ओर चली गई। वृद्धा बैठी रही, लाला जगन्नाथ उसे उपदेश देने लगे। बालिका वास्तव में यहाँ को चूरावूरी देख कर घबरा उठी थी। वहाँ से वह जान बचा कर कोठरी में भाग गई। और चाहे कोई न जाने, परन्तु स्त्रियाँ बदमाशों की पापदृष्टि खूब पहचानती हैं।

  • इसके बाद डॉक्टर जी उठ कर कोठरी में घुस गए, दरवाजा

बढ़का दिया। यह देखते ही गरीब बालिका सूख गई । वह वहाँ