पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२८

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चतुरसेन की कहानियाँ थी, तब कुछ लड़कियों के साथ खेल रही थी । इतने में एक आदमी अाया, वह फुसलाकर हमें तमाशा दिखाने के बहाने थोड़ी दूर ले गया। हम तीन लड़कियाँ चली। थोड़ी दूरपर उसने एक लाँगा रोक कर कहा- लो इसपर बैठ कर चलो, जल्दी पहुँच जाये। हम लोग ताँगे पर बैठ गए। उसने एक मकान में हमें छोड़ दिया, वह बहुत बड़ा कान था और उसमें बहुत सी लड़कियाँ थी। हम कुछ दिन घर की याद में रो पीटकर वहाँ उइने लगी। बहुत दिन बीत गए और हम घर को भूल गई। एक बार एक पञ्जाबी-सा मोटा-ताजा आदमी मेरे पास लाया गया। वह मुझे चूर-चूर कर देखने लगा ! पीछे पत्ता लगा कि इससे मेरी शादी होगा। मैं डर गई। स आश्रम में एक कहार का लड़का नौकर भा, उसने कहा कि मेरे साथ शादी करो तो मैं तुझे यहाँ से निकाल हूँ ! मैं राजी हो गई और वह वहाँ से एक दिन शाम को मुझे निकाल कर, रेल में बैठाकर मथुरा ले आया। हमलोग धर्मशाला में ठहर गए । न जाने कैसे पुलिस ने भाँप लिया कि यह भगा कर ले आया है। पुलिस उसके पीछे पड़ी। वह भाग मैं अकेली रह गई । कहाँ जाऊँ, यह कुछ न बता सकी। पिता का स्मरण की न था ! कहाँ हैं, कौन हैं। लाचार कुछ लोगों ने मुझे वहाँ के विधवाश्रम में भेज दिया। फिर वहाँ रहने लगी। पर यहाँ के हालात बड़े गन्दे थे। खुला व्यभिचार होता था। पुलिस वाले आते और उन्हें लड़कियाँ रात भर को सौंप दी जाती थी। एक बार पुलिस-इन्सपेक्टर को मेरे कमरे में भेज दिया। मैं भय से थर-थर काँपने लगी। पेशाब का बहाना कर छत्त पर से कूदकर भागी। कुछ देर तो जमुना किनारे घाट पर गया,