पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२७

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विधवाश्रम ये लोग तो बेचने को पागल हो रहे थे। मुके बहुद डराया- धनकायः, पर जब मैं राजी न हुई, तब बन्द कर दिया। मैं सात दिन बन्द रहो। दो बार मुन्ने पीटा भी गया। एक बार यह गजपति जबर्दस्ती करने को मेरी कोठरी में घुस आया था, उससे बड़ी कठिनाई से जान बचाई। मैंने उसकी बाँह में काट खाया, उसका निशान अवश्य होगा। यह अधिपात्रो देवी कहाती हैं, पर पूरी चुडैल हैं । ये इसका जुल्म आँखों देखनी और खिलखिला कर हँसती थी। नित्य ही यहाँ ऐसा होता है। उस दिन से मुझे खाना भी नहीं दिया गया था और मार डालने की धमकी दी जाती थी।" मैजिस्ट्रेट ने पूछा-तुम्हारी सम्र क्या है ! रामकली-बाईस वर्ष मैजिस्ट्रेट-तुम्हारे पास कुछ गहना और दूसरा सामान भी था, जब तुम आई थी ? रामकली-जी हाँ हजूर, दो अदद सोने तथा चार अदद चाँदी के गहने थे, सबको कोमर दो सौ रुपया होगी। वे सत्र इन्होंने छीन लिए । वहाँ कोष में जमा होंगे। मैजिस्ट्रेट-और कपड़े वगैरह ? रामकली-वह सब छीन लिया ! मैजिस्ट्रेट-अच्छा तुम इधर बैठो ! दूसरी लड़को को । जाओ। दूसरी लड़को ने आकर बयान किया- "मेरा नाम चम्पा है । उन्न १८ वर्ष की है। जादि की वैश्य हूँ। मेरे पिता बरेली में पुलिस-इन्स्पेक्टर थे। मैं ७-८ वर्ष को