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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१३४

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चतुरसेन को कहानियाँ दण्डाला सुनते ही डॉक्टर साहब तो उसी भाँति देदी गर्दन करके और बूढ़े बकरे की भाँति दाँत निकाल कर हँस दिए ! परन्तु अधिष्ठात्री जी धाड़ मार कर रो दी ! गजपति भी गुस्से से होठ चबाने और गालियाँ बकने लगा। पुलिस ने सबको पकड़-पकड़ कर सीखचों में बन्द कर दिया ! और तीनों स्त्रियाँ मय अपने सामान के स्वाधीन हो और एक बार पिताजी नमस्ते' का व्यङ्ग करके अपनी