पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१५

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आकर जो गंगा की निर्मल लहरों के ऊपर शरद क अमल-धवल पीर नाबालिग जो लोग नैनीताल, मंसूर्ग, काश्मीर और शिमला जले हैं, मेरी राय में वे भख मारते हैं। मैं उनसे कहूँगा-वे बनारस भएँ, चित्रा में पान ग्वाएं , और मेरे बेफिक्र दोस्तों की सोहन का मजा उठाएँ ! हाँ, यह वात जरूर है. उन्हें लादिम है कि अपना बड़ापन, बुजुर्गी, मनहसियत. और लिया को अपने घर पर हो या तो अपनी बीवी के सुपुर्द कर आर या संक में बन्द कर आएँ । मेरे दोस्त ऐसे बड़े लोगों के पास नहीं कर सकते। २ इस बार कई महीने बाद बनारस श्राया था। तमास भी दिल्ली के जलते हुए मकानों में बितानी पड़ी। काम का बोझ इतना था कि दिमाग का कचूमर निकल गया । अब बनारस में हिमश्वेत वाढलों के बीच द्वादशी के बाँद को आँखमिचौनी करते देखा तो तबियत ही हो गई। एक दिन गंगा की गोद में सान्ध्य गोष्ठी की ठहरी । दोस्तों ने लम्बी छुटी की कसर निकालने के लिए दूधिया की जगह लालपरी का प्रोपाम जड़ दिया। रात दूध में नहा रही थी, और मेरे बेमिक दोस्त बलपर्स के रंग में लाल गुल्लाला हो रहे थे। मैं अलस भाव से उनके कच में चटाई पर पड़ा मन्द-मन्द हिलती हुई किश्ती की थपलिया का आनन्द ले रहा था। इस बार मण्डली में एक नए दोस्त को आमद हुई थी। यह नया अदद ऐसा था कि उसने बरबस मुझे अपनी ओर खींच लिया। ई नाक की नोक नीचे झुक कर होठ से सलाह सी कर रही थी। ३ चुचके हुये गाल सफेद रुई