पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१६

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चतुरसेन की कहानियाँ उसी नोक पर गिलिट फेम का एक भदा सा चश्मा रक्खा था। बिखरे हुए रखे खिचड़ी वाल, आगे के तीन दाँत गायब, पान से बाहर तक रगे हुए ओठ, बदन पर एक साधारण चैक-डिजाइन की कमीज्ञ, कमर में बहुत ढीला मैला पायजामा, जिसका एक पायचा फटा हुआ ! पैरों में बिना ही मोजे के बहुत भारी शू, जिनमें झीने नदारद, और धूल-गर्द इतनी कि साफ कहा जा सकता है कि फैक्टरी से निकलने के बाद उन्होंने पालिश की सूरत ही नहीं देखो ! दुबले-पतले, कोई-छटाक भर के आदमी थे। न हँसते थे, न बोलते थे, न इठलाते थे, न मचलते थे शकके बाद दूसरी बीड़ी जेब से निकालते और फूंकते जा रहे थे। मुझे हा के तहल हुआ। परिचय पूछा तो एक दोस्त ने मुस्कुरा कर सिर्फ इतना ही कहा- "आप पीर नाचालिग हैं।" दोस्त के ओठ ही नहीं, आँख माँ मुस्कुरा रही थीं। मैंन उठते हुए कहा- तब तो मुझे श्रापका अदब करना 1 । AN और मैने जरा उठ कर आदाब-अर्ज किया। 'पीर नाबालिग बन कर भी न बने। उगडे-ठण्डे सलाम लेकर उसी गम्भीरता से बीड़ियाँ फूंकते रहे। मैं ध्यान से उनकी ओर घूर कर देखता रहा। एक दोस्त ने कहा-आपके पास कुछ शिकायत करने आए हैं । मैंने हैरान हो कर कहा-शिकायत ? दोस्त के चेहरे पर शरारत की रेखाएँ साफ दीख पड़ रही थीं। उसने नकली गम्भीरता से कहा-जी हाँ, शिकायत! आपको सुनना होगा, और मुनासिब बन्दोबस्त करना होगा।