पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/२०

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पीर नाबालिग "तनी नहीं यार, खाट वाली बात भी कहो!" "एक खाद वहाँ पड़ी थी। मैं बाहर तो निकल ही नहीं सकता था , घुड़लवार लोगों को कुचल रहे थे और पुलिसवाले लाठी चला रहे थे। उधर घोड़ा नामाकृल लात पर लात मार रहा था। मैंने वह खाट अपने और घोड़े के बीच में खड़ी कर ली। अब मारना रहे वह लात।" इतना कह कर पीर नाबालिग बेबस खिलखिला कर हँस पड़े। बार लोग भी हस दिए । परन्तु मै नहीं हँस सका । मेरी आँखों में आंसू आ गए। पीर नाबालिग ने दो कश सिगरेट के खींच कर कहा- कहिए, किया है इतना काम जयप्रकाश नारायण ने ? मेरा इरादा बिल्कुल इस सरल-वृदय वीर युवक का मजाक उडाने का नहीं रह गया । मैं चुपचाप उसको तरफ देखता रहा। उसने फिर कहा- "देखिए, क्रान्तिकारियों को क्या मैं नहीं जानता ? उनके लिए मैंने क्या-क्या जोखम नहीं उठाए ? वम और पिस्तौल छिप-छिप कर कहां से कहां पहुँचाए ! कितना खतरा था इन कामों में, भला कहिए तो?" मैंने कहा-बेशक, बेशक, आपके इन कामों का तो कोई मूल्य ही नहीं है। "परन्तु साहब, मेरे जैसे न जाने कितने युवकों ने देश के काम में जोखिम उठाई । उनमें कितने गोलियों के शिकार हुए, कितने जेलों में सड़े । उनको न कोई जानता है, न कोई उनके जुलूस निकालता है, न उन्हें थैलियां भेंट को जाती हैं, न अख- आर बाले उनकी तारीफें छापते हैं। मरते-खपते हैं हमलोग, है