पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१९

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पीर नानालिग उसपर अन्न आते। पचासों तमाशाई हमारा साथ देते, खम्भे और तार अर्ग कर टूट जाते । कचहरी से लेकर यूनिवर्सिटी तक का मैदान हम दोनों ने साफ कर डाला !" सुन कर मैं चमत्कृत हुआ। मैंने कहा-मोती कौन ? 'वह तो अगले ही दिन गोली का शिकार हो गया ! सोचिए, बारह-तेरह वरस का वह लौंडा और उसका यहकलेजा ? मुक ऐमा प्रतीत हुआ जैसे गोली मेरे ही कलेजे में अभी लगी हो। दोस्त लोग तो शरारत ही के रंग में थे, परन्तु मेरे दिल में उस सीधे साधे युवक के प्रति आदर का भाव बढ़ता जा रहा था! कौतूहल भी कम न था। मैंने कहा-आप इत- मीनान से मेरे और पास आकर वैठिए और माजरा विस्तार से सुनाइए, कैसे क्या हुआ था ! एक दोस्त ने कहा-कचहरी पर तिरंगा झण्डा चढ़ाने की बात कहो, यार । "वह भी मोती ही का करिश्मा था! कन्वहरी के सदर दर्वाजे के लोहे के फाटक बन्द थे। भीतर मशीनगने तैयार थीं, चारों ओर घुड़सवार फौज और पुलिस लाठियाँ और बन्दूके लिए मुस्तैद थी! बरना-पुल से अर्दली-बाजार तक आदमी ही आदमी नज़र आ रहे थे। किसी ने ललकार कर कहा-'है कोई माई का लाल, जो जान पर खेल कर इस कच- हरी पर तिरंगा फहरा दे ?? बस, मेरा खून खौल उठा। मैंने आगे बढ़ कहा-'मैं हूं! मैंने झण्डा लिया और एक ही छलांग में फाटक के उस पार हो गया। मगर मोती बिल्ली की तरह फाटक के नीचे से घुस कर मुझसे आगे आ खड़ा हुआ, और जब तक पुलिस आए, मैंने उसे कन्धे पर खड़ा कर नल