पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/२६

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चतुरसेन की कहानियाँ और बाहव ही सूटते हैं ये लीडर लोग ! कहिए, यह क्या अन्धेर मैंन वास्तविक गभीरता से कहा-निस्सन्देह आप जैसे साइसी और वीर युवकों की ओर से उदासीन हाना जबात अन्धेर है ! परन्तु एक दिन आएगा जब आप जैसे हजारो सुचक्रों का उचिम सरकार होगा। उन्हे ने सोश में आकर कहा हजारों क्यों, नालों काहिए । परन्तु जहा इन लोडों को बढ़-चढ़ कर बातें बधारने के लिए लाखों रुपयों की थैलियां मिलती हैं और जुलूस निकाले जाते है, वहाँ हम जैसे मामूली आदमी त्रिस कदर सब तरह बर्बाद कर दिए गए हैं, इस इन नेताओं तक कौन जनावे ? देखिए मश बाग, चचा, जमीदारी सभी सो नीलाम कुर्क हो गई। चमडर लंग लो हमें जूते साफ करने को भी शायद नौकर न रस्वे ऑन्त्र उठा कर तो हमारी और ताकते ही नहीं ! इतनी चाय-पानी, दावतें होती हैं, कभी बुलाया है हमको ? युबक के भोलेपन पर मैं मुग्ध हो गया। बहुत रोकने पर भी इसी श्रा गई। मैंने कहा---एक दिन आएगा, श्रापको भी बड़ी-बड़ी दावत दी जाएंगी, अखबार वाले श्रापका नाम मोटे मोट अक्षरों में छापगे। "ता आप कुछ छपाइए न ! आप तो बड़े भारी लेखक हैं, आप जो लिख कर भेज देग-विस अखबार वाले की मजाल है जो न छापे ?" मैंने हस कर कहा-लिखूगा, जरूर लिखूगा दोस्त । "खूव बड़िया सी कहानी बना कर लिखिए " "कहानी ही बना कर लिखूगा"