पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुरसेन की कहानियाँ मास्टर माहव ऊब रहे थे। तम्बाकू उनका जल चुका था। उन्होंने अमजद सियों से पीछा छुड़ाने के लिए थोड़ा गम्भीर बन कर कहा- क्या किया जाय अमजद, सब खुदा की मर्जी है। मगर नाई. मानना हूँ तुम्हें । खैर, अब फिक्र न करो, अगले समान अहमद जम्बर पान होगा। और वह तुम्हारी खिदमत भी करेगा। बड़ा शरीफ और फर्नावर लड़का है।' 'और जहीन भी एक ही है हुजूर !:-अमजद ने जोश में दाढ़ी पर हाथ फेरने हुए कहा-'अव तो सब उम्मीद अहमद पर ही है। नजार तो अभी बहुत छोटा है। मगर वह सब सम्हाल लगा। चालीस पाता हूँ हुजूर, उसमें से दस आप की नजर करता रहूंगा। आपका पल्ला पकड़ा है, बस इस बार बेड़ा पार कर दीजिए। साइब ने जवान दे रखी है कि पाम होते ही वह दफ्तर में नौकरी देंगे। और हाँ, कई अच्छे पैगाम भी आ रहे हैं। सोचता हूँ निबट लूँ इस काम से भी । बूढ़ा हूँ हुजूर, न जाने कब हुक्म आ जाय । अहमद मियां का घर बस जाय तो नज़ोर भी पल जायगा। खुदा के फज्ल से दोनों भाइयों में बड़ा मेल है। कहे देता हूँ हुजूर, नजीर भी एक ही निकलेगा। किसी दिन लाऊगा खिदमत में। ऐसा जहीन है कि हर बात में सवाल डालता है। खुदा उसकी उम्र दराज करे-वह अपने अब्बाजान का नाम ऊचा करेगा। सरकार, सौ बात की बात तो यह है कि मीर की बेटी की बरकत है। खानदानी बाप की बेटी थी। एक से बढ़ कर एक पाँच बेटे दिए। मुझे आराम नहीं मिला यह मेरी किस्मत, मगर वे सब तो मजे में हैं, खुश हैं। मुझे और क्या चाहिए। हाथ पैर चलते हैं, कमा कर स्वाता