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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/३५

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अब्बाजान है। कुछ उनकी कमाई का मुहताज नहीं। पर वे खुश रहे इसी में मैं भी खुश हूँ।' मास्टर साहब ऊब कर बड़े हो गए। अमजद सन कुछ कह नहीं सका। बहुत कुछ कहना चाहता था, परन्तु मास्टर माहेब अब सुनने को तैयार न थे। उन्होंने कहा- अमजद, हौसला रखो, अगले साल ।' 'जी हां हुजर, अगले साल ! दिन जाने क्या देश लगती है। लड़का जोन है, साहव खुश हैं। अगले साल. उसके काले काले मोटे होठों में अगले साल की आशा में हास्य फैल गया। दोनों हाथ उठा कर उसने मास्टर साहब को और मुझे सलाम किया और दाढ़ी और होठों में कुछ कहतक हुआ चला गया।