पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुष्य का मोल प्रातःकाल साहब के बंगले पर जाकर सरदार ने मेम साहब से मुलाकात माँगी । इस समय वह मुफकारने वाली नागिन न थी। वह पालतू बिल्ली की भाँति दौड़ी आई और कहा-"हल्लो सरडार , क्या रुपया मिला! ओह, कल डाक का जहाज छूट जायगा मपया नहीं मिलेगा तो सब गड़बड़ हो जायगा। "रुपया में ले आया हूँ, यह लीजिए। थोड़ा ज्यादा ही लाया हूँ, शायद और जरूरत आ पड़े। सरदार ने महज भाव से कहते हुए नोटों का बण्डल मेम साहब के हाथों में थमा दिया। ६ साव के बंगले से लौट कर नरेन्द्र सिंह जब आफिस पहुँचे तो वहाँ तहलका मचा हुआ था। दल-बल सहित पुलिस वहाँ उपस्थित थीं। थानेदार और सिपा.ी अपना पूरा रोब दाब चपरासियों, क्लों और नौकरों पर गाँठ रहे थे। नरेन्द्र सिंह जाकर सहज स्वभाव से अपनी कुर्सी पर बैठ गया। मालिक ने उसे अपना प्रधान सहकारी बनाया था यह सभी जानते थे। सरदार पर चोरी का किलो के शक न था। थानेदार ने कहा-"सुना आपने. पाँच हजार रुपए तिजोरी तोड़ कर चोरी गए हैं। कहिए आपको शक है किसी पर । "शक ? शक की क्या बात है।" "यह किसका काम हो सकता है, आप कुछ कह सकते हैं ? "यकीनन " "अच्छा, तो आपको कुछ सुराग लगा है ?" "अरे भाई, रुपये तो निकाले ही गए हैं।" २४