पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/७५

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जेन्टिलमन और मटपद नये डिजाइन का एक भव्य मार्केट बनवा डालिए । आनन-फानन में मर जायगा।" इसके बाद कुछ गोपनीय परामर्श करके मिस्टर जेन्टलमैन ६ नया मार्केट बन गया ! उसमें सिर्फ चालीस लाख रुपया खर्च हुआ। साठ लाख रुपया सेठ जी को बच गया । इधर एक लाख रुपया महीना किराया आने लगा। मि० जेन्टलमैन को इस धन्धे में लूट की बेशुमार दौलत के अलावा दस लाख रुपया सेठ जी से इनाम मिला। अब चे गुड़ पर चींउटे को भाँति चिपक रहे थे। सेठ जी उनकी योग्यता के कायल थे। दोनों दोस्त भी चूर-चार से पेट भर रहे थे। चारों दोस्त बैठे थे। नन्हीं नहीं बूंदे पड़ रही थीं। मेज पर चाय और खाने की वैधनावी चीजें धरा थीं। सेठजी बोले- "मिस्टर जेन्टलमैन, कुछ नया धन्धा किया जाय। जिससे दस- जीस लाख फोकट में पैदा हो जाय।" मिस्टर जेन्टलमैन ने हँसकर कहा-"कौन बड़ी बात है। यह रुपया कब-तक श्रापको चाहिए ?" "ज्यादा से ज्यादा दो महीने में गर्मी शुरू होने पर तो काश्मीर जाने का इरादा है।" "अच्छी बात है। उन्होंने जेब से फाउन्टेनपेन निकाल कर नोटबुक का एक पन्ना फाड़ कर कहा-“सेठजी, कल्पना कर लीजिए कि हम लोग एक लिमिटेड कम्पनी बनाने जा रहे हैं, जिसका मूलधन पचास लाख होगा । उसमें रेशम काता जायगा ।