जेन्टिलमैन मिन्दर दात से चलती बार उन्होंने कहा--"घर पर श्राना, मैं सब समझा दूंगा।" "धनजी सिल्क स्पिनिंग कम्पनी लिमिटेड' का पाटिया उसी समाह इफ्तर में लग गया । आवश्यक मेज कुर्सियाँ भी बिछ बाइ । काराजात मी छप गए। आफिस में मिस्टर दास और मिन्टर जेन्टलमैन बैठे थे। थोड़ी देर में डाक्टर सिन्हा भी तशरीफ ले आए। उनके आते ही मि० जेन्टलमैन ने कहा-“मिस्टर सिन्हा, अब आपको सब कुछ करना पड़ेगा । सुनिए, आपको तीस- चालीस आदमी निरन्तर शेअर बाजार में भेजने पड़ेंगे, जो चाहे भी जिस भाव पर हमारी कम्पनी के शेअर खरीदेंगे। मि० दास श्रापको पचास हजार रुपये रोज़ देंगे। यह आपके प्राद- मियों का काम है कि वे कम से कम पचास हजार रुपये रोज के शेअर खरीद लाएं।" "आप समझ गए न, मि० दास?" "समझ लो गया, परन्तु रोज पचास हजार रुपया दूँगा कहाँ से? और कब तक ?" मिटर जेन्टलमेन ने मुस्कराकर कहा--"वाह, ये रुपए तो रोज़ ही आपके पास लौट आएँगे। सिर्फ दस-पाँच की कमी- ज्यादती रहेगी? 'यह किस तरह?" "इस तरह कि जब मि० सिन्हा के आदमी शेअर बाजार में अपनी कम्पनी के शेअरों को खरीद करेंगे, शेअर बाजार वाले अवश्य ही आपको फोन करके शेअर खरीदकर रखेंगे तथा बेचेंगे-