पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/७८

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चतुरसेन को कहानियाँ वे सब रुपए आपको मिलेंगे। सिर्फ आप इन लोगों को दलाली देग। यह आप उनसे तय कर लीजि" मि० ० दास हँसकर बोले-"यह तो समम् गया । परन्तु इससे हमें क्या लाभ होगा? "यह खेल दस-बीस दिन चलता रहेगा। दिन-दिन नए-नए प्राइक मि० सिन्हा बाजार में भेजते रहेंगे । जब बाजार में यह प्रसिद्ध हो जायगा कि अमुक कम्पनी के शेरों की बाजार में बहुत खपत है, तर आप बाजार में शेअर भेजने से इन्कार कर दीजिए, और प्रऋट कर दीजिए कि अब बेचने के लिए शेअर "इसके बाद ?" 'इसके बाद, मि. सिन्हा के आदमी तो बाजार में सरगर्मी से फिरते ही रहेंगे ये एक सौ पाँच तक में शेअर खरीद करने को तैयार हो जाएगे। 'वस, ज्योंही शेअर का बढ़ा हुआ भाव बोर्ड पर चढ़ा और बाहरी ग्राहक टूटे। लोग मूर्ख तो हैं ही। यह कोई नहीं पूछता कि कौन कम्पनी कहाँ है, उसकी क्या हालत है। बस जिसके शेअर की दर बढ़ गई-उसी पर टूट पड़ते हैं। बस हम लोग आपस में ही एकसौ दस-एकसौपचीस तक वाद्वार-भाव कर देंगे। और जब देखेंगे कि बाहरी आदमी खरीद रहे हैं, अपने तमाम शेअर बेच डालंगे" मि दास की आँखें चमकने लगीं। उन्होंने कहा- बाहरी आदमी क्या अन्धे हैं जो बिना देखे-भाले अपना रुपया "अन्धे ! आप अन्धे कहते हैं, मैं कहता हूँ वे उल्लू के 'ब?