जेन्टिलमैन धीरे-धीरे बैंक की भीतरी हालन में परिवर्तन हो रहा था। अनेको मदों में होकर वक का बेशुमार रुपयामि जेन्टलमेन्ट के घर पहुँच चुका था। सेउजी के जाली दस्तखतों से छक के डाइरेक्टरों की काल्पनिक बैठकों के नियों पर बहुत से महत्त्व- पूर्ण काम कर डाले गए थे। अब सेठजी से मि० जेन्टलमैन को भारी बतरा था, चाहे जन उनका भण्डाफोड़ हो सकता था। मि. जेन्टलमैन ने अन्त में सेठ जी को दुनियाँ से उठा डालने का निश्चय कर डाला। रात के दस बजे थे। मिदास और मिसिन्हा के साथ मि. जेन्टलमैन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय पर बातचीत कर रहे थे। बातचीन बहुत गम्भीरतापूर्वक हो रही थी। सब बार्ने सुनकर मिः सिन्हा ने कहा--"लेकिन दास्त यह निहायत खतर- नाक काम है और अगर भेद खुल जायगा तो हम तीनों पाद- भियों को कालापानी हुओ रखा है और मैं तो अवश्य ही फाँसी पर लटकाया जाऊँगा मि० जेन्टलनेन ने कहा-"यह आप बिल्कुल बेवकूफी की बात करते हैं। भेद खुलेगा ही कैसे ? हम तीन ही तो बादर्मा इसको जानते हैं। तीनों ही इस खतरे के जिम्मेदार हैं। फिर खोलेगा कौन? फिर इससे पहले जो काररचाइयाँ हुई हैं उनके भेद क्या खुले हैं ? मि० सिन्हा ने घबराकर कहा-"लेकिन मि. जेन्टलमैन ! अगर आप मुझे इस बार बरी रखते तो अच्छा था।" जेन्टलमैन ने क्रुद्ध होकर कहा-"चत्र क्या आप समझते हैं कि लाखों रुपयों की सम्पत्ति याहो हड़प लो जा सकता है ?