चतुरसेन की कहानियाँ दो लाख से भी कम था। बाकी रुपया वे अपनी समस्त आम, दनी से पूरा करते रहेंगे, इसका एग्रीमेन्ट था । बैंक शुरू ही से नफा बाँटने लगा था यह देखकर दोनों मित्रों को यह तलाबेली पड़ी थी कि अधिक से अधिक नफा प्राप्त करने को जल्द से जल्द अपना रुपया कमा कर दें। सेठ जी को भी यही पट्टी पढ़ाई गई थी कि नफा जो मिले उसके अधिकाधिक शेअर खरीदते जाइए, जिससे बैंक ही आपका हो जाय ! और सेठजो के दिमाग में यह बात अँच गई थी। तीन साल बीत गए। बैंक की अब कई शाखाएँ खुले गई थी और उसकी साख बहुत बढ़ गई थी। इस बीच में मि०. जेन्टलसैन ने अपने बहुत से हिस्से बेच डाले थे। इसके सिवा उन्होंने बैंक से बहुत सा रुपया कर्ज ले रखा था। यह सब रुपया ठनके हिस्सों की जमानत पर था। क्योंकि वे बैंक के कर्ताधर्व थे। वे स्लिप लिखकर बैंक भेज देते, उतना ही रुपया वे पा जाते। इस रुपये से उन्होंने अपनी स्त्री के नाम बेशुमार जाय- दाद खरीद ली थी। महावारी वेतन के सिवा उनकी और भी आमदनी थी। एक रियासत को आपने बैंक से बाईस लाख रुपया कर्जा दिलवाया। स्टेट की पन्द्रह साल की तमाम तहसील बैंक ने पाकर ली। पूरे लाम का सौदा था। इसमें आपको कुछ भी नहीं करना पड़ा। परन्तु डाइरेक्टरों को राजी करने में पारिश्रमिक स्वरूप आपको एक लाख रुपया इनाम या घूस मिल गया। इस प्रकार की आमदनी आपको होती ही रहती थी।
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