पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
काले पानी के आदिम असभ्य


घूँ घरवाले और मुखं कान्तिमान होता है। पर उन्हें रूप- वान् नहीं कह सकते। क्योंकि उनकी नाक चौड़ी भौर चिपटी, होंठ काले और आँखें उमड़ी हुई होती है। भौहों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए वे उन्हें मुंडा डालते हैं। पर फल इसका उलटा ही होता है। ये लोग प्रसन- चित्त, स्वाधीनता के प्रेमी और शिकार के शौकीन होने हैं। अपनी सन्तान के साथ ये बड़े प्रेम और बड़ी दया का व्यवहार करते हैं। ये बड़े ही सन्तानवत्सल होते है। परन्तु कुछ लोगों का कहना है कि इनमें कृतघ़ता, धोखे- बाज़ी और निर्दयता के भी भाव, कभी कभी, कारणवश, उद्दीप्त हो उठते हैं। अपरिचित आदमियों के साथ इनका व्यवहार अच्छा नहीं होता। ये उन्हें अपना शत्रु समझते हैं और देखते ही उन्हें मार डालने की चेष्टा करने हैं। बहुत पुराने जमाने में यदि कोई जहाज़ इन द्वीपों के किनारे नष्ट हो जाता था तो जहाज़वालों का पता न चलता था कि वे कहाँ गये और उनका क्या हुआ। अनुमान यह है कि जहाजों के अपरिचित आदमियों को अन्दमनी लोग मार डालते थे। इसी से, इस तरह की घटनाओं के बाद, और जहाजवाले इन द्वीपों के पास से निकलते ही न थे। वे लोग इन्हें दूर ही से प्रणाम करके निकल जाते थे। कुछ लोगों का ख़याल है कि प्राचीन काल के मलयद्वोपवासी जलचोर इन द्वीपों के निवासियों