पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६२
पुरातत्व-प्रसङ्ग


भिड़ना इनकी आदत में दाखिल है। प्रत्येक सकालवा अपने पडोसी से भी सदा डरता रहता है। वह समझता है, कहीं ऐसा न हो जो धन के लोभ से वह उसे मार डाले या गुलाम बनाकर बेच ले। इस जाति में कहीं कहीं मनुष्यों के खरीद-फरो़ख्त़ की प्रथा अब तक जारी है।

मैडेगास्कर के इन मूल-निवासियो में एक बड़े ही अद्भुत ढंग का रणनृत्य होता है। जब ये आक्रमण, युद्ध, हर्ष-प्रकाशन आदि का आदेश अपने सहयोगियों या साथियों को देते हैं तब एक विचित्र रीति से अंग-सञ्चालन करते हैं; मुँह से कुछ नहीं कहते। इनकी बन्दूके खूब लम्बी होती हैं। उनके ऊपरी भाग पर काँसे का एक कॉटा लगा रहता है। वह शायद शिस्त लेने के लिए लगाया जाता है। नाच के समय ये लोग अपनी अपनी बन्दूके लिये रहते हैं। उन्हें ये एक हाथ से उछालते और दूसरे हाथ से रोकते हैं। उछालते समय जो हाथ खाली हो जाता है उससे ये अपने अपने रूमाल हिलाने लगते हैं।

इस जाति के जो मूल-निवासी समुद्र के पूर्वी तट की तरफ रहते हैं वे प्रायः शान्त भौर नम्र स्वभाव के होते हैं। परन्तु उनके सिर के बाल देख कर डर लगता है। ने सुअर के बालों की तरह सीधे खड़े रहते हैं। बास-