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पुरातत्व का पूर्वेतिहास


इतिहास की घटनायें प्रकाश में आने लगीं। यह बहुत बड़ा काम हुआ। इसका सारा श्रेय जेम्स प्रिंसेप को मिला।

बस, अब भारत की पुरानी लिपियों में से केवल एक लिपि का ज्ञान-सम्पादन करना शेष रहा। उसका नाम है खरोष्ठी। यह लिपि पुराने जमाने में केवल पञ्जाब और उसके आगे गान्धार देश ही के लेखों आदि में, सन् ईसा के तीन चार सौ वर्ष पहले तक, प्रयुक्त हुई थी। बाक्टियन श्रीक, शक, क्षत्रप आदि राजवंशों के समय के सिक्कों पर यही लिपि व्यवहृत हुई थी। अफ़गानिस्तान की सीमा और उस देश के भीतर भी पाये गये अशोक के कई अभिलेख भी इसी लिपि में हैं। इसे पहले कोई ससेनियम लिपि कहता था, कोई पहलवी, कोई ब्राली का ही पूर्वरूप, कोई कुछ, कोई कुछ। पर पढ़ कोई नहीं सका। उधर मिले हुए सिक्कों पर एक ओर ग्रीक और दूसरी और खरोष्ठी लिपि को देख कर मेसन साहब ने अन्दाज़न कुछ नाम पढ़े; यथा मिनेड्रो, अपो- लोडौटौ, अरमाइयो आदि। ग्रीक नाम पढ़ कर, कुछ कुछ अक्षर साम्य के आधार पर, उन्होंने इस तरह का अन्दाज़ा किया। उन्होंने इस विषय में प्रिंसेप साहब से लिखा पढ़ी की। उन्होंने कई नामों और कई पदवियों को पढ़ लिया। इस प्रकार खरोष्ठी-लिपि के कई अक्षरों