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पुरातत्व का पूर्वेतिहास


जनरल का पद तोड़ दिया गया। सरकार ने कहा--बस ५ वर्षों में इसका काम ख़तम कर दिया जाय। परन्तु काम कुछ हुक्म के अधीन थोड़े ही रहता है। वह खतम न हुआ; उलटा बढ़ता दिखाई दिया। तब गवर्नमेन्ट ने हुक्म निकाला कि खोज का काम बन्द किया जाय: केवल संरक्षण का काम जारी रहे। तदनुकूल ही कारवाई होने लगी। यह उतरती कला १९०० ईसवी तक रही।

इसी बीच में लार्ड कर्जन गवर्नर जनरल होकर भारत आये। उन्होंने पुरातत्त्व के काम में बड़ी दिलचस्पी दिखाई और एक लाख रुपया वार्षिक ख़र्च मंजूर किया। १९०२ में मार्शल साहब विलायत से बुलाये गये और डाइरेक्टर जनरल नियत हुए। वही अब तक इस पद पर हैं। तब से इस महकमे का काम बहुत सपाटे से हो रहा है।

गवर्नमेन्ट की देखा देखी कई देशी रियासतो ने भी अपने यहाँ पुरातत्त्व-विभाग खोल दिये हैं और अजायवघरों की भी स्थापना की है। भावनगर, माइसोर, हैदराबाद, ट्रावनकोर आदि राज्य इस विषय में सबसे आगे हैं। सारनाथ, मथुरा, नागपुर, कलकत्ता, बम्बई, मदरास, लाहौर, लखनऊ, अजमेर आदि में जो अजायवघर हैं उनमें पुराने सिक्कों, चित्रों, शिलालेखो, ताम्रपत्रों और अन्य प्राचीन वस्तुओ के संग्रह को देखकर प्राचीन भारत की अनन्त ऐतिहासिक घटनाओं का दृश्य नेत्रों के सन्मुख आजाता है।