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पुरातत्व-प्रसङ्ग


लन्दन में भी एक बहुत बड़ा प्राचीन पदार्थ-संग्रहालय है।

भारत के पुरातत्त्व की खोज करने के लिए अब तो फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रिया, इटली, रूस आदि में भी बड़ी बड़ी संस्थायें खुल गई हैं और अनेक सामयिक पुस्तकें निकल रही है। उनमें बड़े ही गवेपणापूर्ण लेख प्रकाशित होते हैं। ये संस्थायें सैकड़ों प्राचीन ग्रन्थों का भी उद्धार कर रही हैं। इस विषय में जर्मनी के विद्वानों ने सबसे अधिक काम किया है और बराबर कर रहे है।

इस समय पुरातत्व से सम्बन्ध रखनेवाली अनेक सामयिक पुस्तकें निकलती हैं। प्राचीन शिलालेखों और ताम्रपत्रो आदि के प्रकाशन के लिए भी--इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, इपीग्राफिया इण्डिका, इपीग्राफिया कर्नाटिका आदि--कई सामयिक पुस्तकें हैं। एक पुस्तक ब्रह्मदेश के प्राचीन लेख प्रकाशित करने के लिए अलग ही है।

इस महकमे ने भारत की प्राचीन कीर्ति की जितनी रक्षा की है उतनी और किसी ने नहीं की। इसी की बदौलत अनन्त स्तूपों, मन्दिरो, मसजिदों और ऐतिहासिक इमारतों की रक्षा हुई है। यदि यह महकमा अस्तित्व में न भाता तो सहस्रशः प्राचीन नरेशों का नाम तक सुनने को न मिलता और अनेक प्राचीन राजवंशो के अस्तित्व तक का पता न लगता।

[जनवरी १९२३