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पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/४

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जिनके बल, वीरर्य, पराक्रम और सम्पत्ति का नाश दूसरों ने नहीं कर डाला वे यदि दैवयोग से, विपत्ति- ग्रस्त हो जायँ तो विशेष परिताप को बात नहीं। ऐसी दशा में तो सन्तोष मनाने के लिए भी जगह रहती है। तब तो यह भी कहा जा सकता है कि बात उपाय के बाहर थी, क्या करें; लाचार होना पड़ा। परन्तु जिनका पराभव उन्ही की मूर्खता और बेपरवाही के कारण दूसरों के द्वारा हो जाता है उन्हें तो डूब मरना चाहिए। वे तो मुँह दिखाने लायक भी नहीं रह जाते। उनकी दुर्गति देख कर तो कलेजा मुँह को भाता है।

इस संग्रह में कुछ ऐसे लेखों का प्रकाशन किया जाता है जिनसे भारत के प्राचीन गौरव की धूमिल-सी, कुछ थोड़ी, झलक देखने को मिलेगी। कहाँ कम्बोडिया, कहाँ सुमात्रा और नावा आदि द्वीप और कहाँ तुर्किस्तान तथा अफगा- निस्तान। पर किसी समय, वहाँ सर्वत्र भारतीयों ही की सत्ता और प्रभुता का प्रभाकर देदीप्यमान था। इन लेखों के पारायण से और कुछ नहीं.तो हमें अपने पूर्व- रूप का कुछ तो आभास अवश्य ही मिल सकता है। अतएव यदि इस संग्रह से और कोई लाभ न हो तो भी इसका प्रकाशन निरर्थक नहीं माना जा सकता। यदि हमें इससे इतने ही ज्ञान की प्राप्ति हो जाय कि हमारा भूत- कालिक गौरव सी और कितना था तो, इसी को बहुत