चारों ओर चक्कर लगा कर जहाज, पर लौट आती थीं।
परन्तु यदि भूमि जहाजों से कुछ ही मील दूर होती
थी तो चिड़ियाँ उसी की ओर उड़ जाती थीं। इससे
जहाज चलानेवाले जान जाते थे कि भूमि किस तरफ,
है और वह कितनी दूर है।
समुद्र-यात्रा और सामुद्रिक व्यापार का सबसे
अधिक और स्पष्ट उल्लेख जातक-ग्रन्थों में पाया जाता
है। इन ग्रन्थों में ८०० ईसवी पूर्व से २०० ईसवी
तक की सामुद्रिक बातों का जिक्र है। बबेरू-जातक से
यह साफ तौर पर मालम होता है कि अशोक के पहले
हिन्दुस्तान और बाबुल के बीच व्यापार होता था। पर-
लोकवासी अध्यापक बूलर इस महत्त्वपूर्ण जातक के
विषय में लिखते है कि--"बवेरू-जातक अब खूब प्रसिद्ध
हो गया है। उसकी ओर लोगों का ध्यान पहले-पहल
अध्यापक मिनायाफ ने आकृष्ट किया था । उसमें लिखा
है कि हिन्दू-व्यापारी मोरों को बबेरू ले जाते और उन्हें
वहाँ बेचते थे। बबेरू, बबीरू या बेबीलोन एकही देश
के भिन्न भिन्न नाम है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इस
जातक की कथाओं से मालूम होता है कि आज-कल की
तरह ईसा के पहले, पाँचवीं और छठी शताब्दी में भी,
भारत के वणिक फारिस के उपसागर के किनारे बाले
प्रान्तों में सामुद्रिक व्यापार करते थे। सम्भव है कि