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पुरातत्व-प्रसङ्ग


जाना पड़ता था। परन्तु सारी कठिनाइयों को हल करके सहामुनि अगस्त्य विन्ध्याचल के उस पार पहुँच गये। वहाँ जाकर उन्होंने दूर दूर तक के जंगल कटवाकर वह प्रान्त मनुष्यों के बसने और आवागमन करने योग्य बना दिया। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में लिखा है कि उस प्रान्त को मनुष्यों के बसने योग्य बनाने में दण्डकारण्य के असभ्य जंगली लोगों (राक्षसों) ने अगस्त्य के काम में बड़ी बड़ी बाधाये डाली। परन्तु अगस्त्य ने उन सबका पराभव करके कितने ही आश्रमों और नगरों की स्थापना कर दी। इरावल और वातापी नाम के दो राक्षस (शायद असभ्य जंगली लोगों के सरदार) उस समय वहाँ बड़े ही प्रबल थे। उनके उत्पात सदा ही जारी रहते थे। उन्हें भी अगस्त्य से हार खानी पड़ी। इस बात का भी उल्लेख पूर्वोक्त रामायण के लङ्का-काण्ड में है। वर्तमान ऐपोल और बादामी नगर उन दोनो राक्षसों की याद अब तक दिला रहे है।

अगस्त्य ऋपि ने दक्षिण में अपने मत ही का प्रचार नही किया। उन्होंने वहाँ वालों को कला-कौशल भी सिखाया। कितने ही नरेशों तक को उन्होंने अपने धर्म में दीक्षित किया। पाड्य-देश के अधीश्वरों के यहाँ तो उनका सबसे अधिक सम्मान हुआ। उनको वे लोग