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पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/७८

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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


सञ्जय बड़ा ही बलशाली राजा हुआ। उसने सुमात्रा, वाली और मलयप्रायद्वीप के समस्त नरेशों का पराजय करके उन्हें अपने अधीन कर लिया था।

शक ६८२ (सन् ७६० ईसवी) में उत्कीर्ण एक और शिलालेख, पूर्वी जावा में, प्राप्त हुआ है। उसमें अगस्त्य ऋषि की एक प्रस्तर-मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है। उसकी स्थापना गजयान नामक राजा ने की थी। यह राजा ब्राह्मणों का पुरस्कर्ता और कुम्भयोनि अगस्त्य का उपासक था।

यवद्वीप के निवासी अगस्त्य के परम उपासक थे। ८६३ ईसवी के एक और शिलालेख में भी अगस्त्य का नाम आया है। इस लेख को भाषा "कवी" है। संस्कृत और जावा की तत्कालीन प्रान्तिक भाषा के मिश्रण से बनी हुई भाषा का नाम "कवी" है। इस शिलालेख में भद्रलोक नाम के एक मन्दिर का उल्लेख है। उसे स्वयं अगस्त्य ने बनवाया था। उसमें अगस्त्य की सन्तति के विषय मे आशीर्वाद है। इससे सूचित होता है कि अगस्त्य-मुनि दक्षिणी भारत से जावा में जा बसे थे।

इस बीच में राजनैतिक उलट-फेर बहुत कुछ हो जाने के कारण मध्य-जावा, शैव-सम्प्रदाय के नरेशों के हाथ से निकल कर, सुमात्रा के महायान-सम्प्रदाय वाले बौद्धों के अधिकार में चला गया। यह घटना ईसा के