सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७३
सुमात्रा, जावा द्वीपों में प्रा०हिं० सभ्यता


कुछ अरव बस गये थे। उनके सरदार ने अशर्फियों से भरी हुई एक थैली कलिङ्ग-राज्य की सीमा के भीतर, एक सड़क पर, रखवा दी कि देखें उसे कोई उठा ले जाता है या नहीं। तीन वर्ष तक वह वहीं पड़ी रही; किसी ने उसे छुवा तक नहीं। इसके बाद एक दिन कलिङ्ग के युवराज के पैर से वह थैली टकरा गई। इस पर रानी सिमा सख्त नाराज़ हुई। पहले तो उसने युवराज को वध-दण्ड दिये जाने की आज्ञा दे दी; पर लोगो के बहुत कुछ समझाने पर उसने युवराज के उस पैर का केवल अँगूठा कटवा कर उसे छोड़ दिया। इस घटना का भी उल्लेख चीनियों के इतिहास मे है।

मध्य-जावा में एक जगह जगाल है। वहाँ एक शिला- लेख, शक ६५४ (७३२ ईसवी) का, मिला है। यह पहला ही शिलालेख है, जिसमें सन्-संवत् दिया हुआ है। इसकी भी भाषा संस्कृत और लिपि वही पल्लव- ग्रन्ध है। इसमें एक शिवालय के पुनर्निर्माण का उल्लेख है। दक्षिणी भारत में अगस्त्य मुनि के एक आश्रम का नाम कुञ्जर-कुञ्ज था। जावा का वह शिवालय इसी कुञ्जर-कुञ्ज के शिवालय के ढंग का बनाया गया था। इसमें मध्य-जावा के दो नरेशो--सन्नाह और सञ्जय—— का ज़िक्र है और लिखा है कि उन्होंने इस भू-मण्डल पर, चिरकाल तक, मनु के सदृश न्यायपूर्वक राज्य किया।