पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/८१

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सुमात्रा, जावा द्वीपों में प्रा०हिं० सभ्यता


खाती है और बहुत ही अच्छी है। श्रीविनय के शैलेन्द्र- नरेश संस्कृत भाषा के साहित्य के भी उन्नायक थे। उनमें से एक राजा ने अपने यहाँ की "कवी' भाषा में संस्कृत के एक शब्दकोश की रचना भी की। जावा में सुमात्रा के श्रीविजय-नरेशों का राज्य ईसा के दसवें शतक तक रहा।

दसवें शतक में मध्य-जावा के शैव नरेश, जो अपने देश से निकाले जाने पर पूर्वी जावा में जा बसे थे, फिर प्रबल हुए। उस समय श्रीविजय के सूबेदार या गवर्नर मध्य-जावा में शासन करते थे। उन्होंने उन सूबेदारों को निकाल बाहर किया और अपना राज्य उनसे छीन लिया। तब शैवों का प्रभुत्व वहाँ फिर बढ़ा और अनेक विशालकाय शिवालयों और मन्दिरो का निर्म्माण हुआ। उनमें से एक मन्दिर में रामायण से सम्बन्ध रखनेवाली बड़ी ही सुन्दर चित्रावलियाँ और मूर्तियाँ बनाई गई। इसके बाद किसी दुर्घटना--बहुत करके किसी ज्वालामुखी पर्वत के स्फोट के कारण मध्य-जावा उजड़ गया।

तदनन्तर पूर्वी जावा की बारी आई। यू-सिन्दोक नामक नरेश के प्रताप से उसकी उन्नति हुई। उसने वहाँ एक बलवान राज्य की नीव डाली। उसकी पौत्री महेन्द्रदत्ता का विवाह वाली के गवर्नर उदयन के साथ