घटनायें नहीं हुई। शृङ्गश्री के चौथे राजा कृतनगर का
राजत्वकाल, अनेक विषयों में, महत्त्व-पूर्ण घटनाओ के कारण
बहुत प्रसिद्ध हुआ। उसने अपने राज्य की सीमा के पास
पढ़ोसवाले कितने ही देशों और प्रदेशों पर चढ़ाइयाँ करके
उन पर विजयप्राति की। परन्तु बाहरी लड़ाइयों में लगे
रहने के कारण यह स्वदेश का शासन अच्छी तरह न कर
सका। वह बड़ा अभिमानी था। उसने चीन के राजेश्वर
कुदिलाईखा के भेजे हुए राजदृत तक का अपमान किया।
उससे उसके सरदार और मण्डलेश भी नाराज़ थे। फल
यह हुआ कि केदिरी के मण्डलेश्वर जपलटोग ने उसे मार
डाला। उसका दामाद रेडन-विजय, इस युद्ध में, अपने
ससुर कृतनगर का सहायक था। वह भी जयकटींग के
भय से एक छोटे से टापू को भाग गया। कुछ समय के
अनन्तर वह वहाँ से लौटा और कपटाचार की बदौलत
अपने शत्रु जयकटोंग को मार कर आप राजा बन गया।
उसने माजा-सहित नाम का एक नया नगर बसाया। वहीं
उसने, १२९४ ईसवी में, अपना अभिपेक कराया। सिंहा-
सनासीन होने पर उसने अपना नाम रक्खा--कृतराजस
जयवर्धन। जिस स्थान पर इस राजा के शव का दाह
हुआ था वहाँ पर उसको एक बड़ी ही सुन्दर प्रस्तरमूर्ति
विद्यमान है। उसम उसकी आकृति विष्णु की जैसी बनाई
गई है। विष्णु के आयुध भी उसमें ज्यों के त्यों बने हुए
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सुमात्रा, जावा द्वीपों में प्रा०हिं०सभ्यता