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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


समय यवद्वीप के व्यवसायी सामुद्रिक यात्रायें दूर दूर तक करते थे। आफ़रीका के पूर्व-तटवती सोफाला नामक वन्दरगाह तक उनके जहाज़ जाते थे। वे लोग वहाँ से हबशी दास भी जावा को ले आते थे। वे केदिरी-नरेश की सेवा के लिए नियुक्त होते थे। कुछ पुरातत्त्व-वेत्ताओं का खयाल है कि सन् ईसवी को प्रारम्भिक शताब्दियों में सुमात्रा और जावा के हिन्दुओं ने मैडेगास्कर नामक द्वीप में अपने उपनिवेश स्थापित करके उसे आवाद किया था।

जावा की पुरानी भाषा "कवी" में दो इतिहास बड़े मार्के के हैं। एक का नाम है नगर कृतागम, दूसरे का परा- रतन। पहले ग्रन्थ में ईसा की बारहवीं सदी से १३६५ ईसवी तक का और दूसरी में १४७८ ईसवी तक का इतिहास निबद्ध है। इनसे जो बातें जानी जाती है उनका दिग्दर्शन नीचे किया जाता है।

जावा मे केन-अरोक नाम का एक बड़ा ही मायावी सरदार था। वह बुद्धिमान भी था और साथ ही कुटिल और कपटी भी था। केदिरी के अन्तिम अधिपति का नाश करके, १२२० ईलवी में, वह उस राज्य का स्वामी बन बैठा। उसने शृङ्गभी (सिद्धसारी ) को अपनी राजधानी बनाया। सात वर्ष में वह अपने राज्य को दृढ़ कर ही पाया था कि १२२७ ईसवी में वह मारा गया। उसके अनन्तर दो राजे और हुए; पर उनके राजत्वकाल में कुछ भी विशेष